बर्मन जाति का इतिहास क्या है

बर्मन जाति का इतिहास क्या है

 

 

Burman Jati Ka Itihaas Kya Hai
Burman Jati Ka Itihaas Kya Hai

 

 

बर्मन जाति को ढीमर जाति भी कहा जाता है ढीमर को असल में ढीवर कहा जाता है लीवर शब्द इस जाति का सही उच्चारण है प्राचीन समय में ढीवर शब्द का मूल शब्द ढीइवर है ढीइवर का अर्थ होता है बुद्धि में श्रेष्ठ। महर्षि द्रोणाचार्य के शिष्य एकलव्य धीइवर पुत्र हैं महाभारत काल में महर्षि द्रोणाचार्य ने अपने शिष्य एकलव्य से गुरु दक्षिणा के बदले अंगूठा मांग लिया था और एकलव्य ने अपना अंगूठा काट कर गुरु के चरणों में अर्पित कर दिया था एकलव्य ढीवर जाति के थे ढीवर जाति का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है लेकिन ढीवर जाति के महाराजा भगवान गुहराज निषाद थे जो भगवान श्रीराम के बाल सखा थे उत्तर प्रदेश के श्रृंगवेरपुर में गंगा नदी के तट पर गुहराज निषाद का का शासन था।

 

 

मध्यप्रदेश शासन के अनुसार – बर्मन जाति को ढीवर जाति भी कहा जाता है इस बात की पुष्टि मध्य प्रदेश शासन पिछड़ा वर्ग विभाग एवं अल्पसंख्यक विभाग मंत्रालय भोपाल द्वारा भी की गई है बर्मन जाति का मुख्य कार्य जलीय कृषि मछली पालन, मछली पकड़ना,सिंघाड़ा उगाना, कमलगट्टा उगाना पानी भरना नाव चलाना जल्द से जुड़े समस्त कार्य इस जाति के द्वारा किए जाते थे बाथम कश्यप रैकवार बोई जाती की उपजातियां इसी रूप में सम्मिलित की है राजगढ़ गुना शाजापुर उज्जैन रतलाम मंदसौर नीमच धार इंदौर झाबुआ एवं अलीराजपुर आदि जिलों में निवासरत है।सोंधिया जाति का परंपरागत व्यवसाय कृषि कार्य एवं पशुपालन है।

 

 

 

जलवंशीय सभी जातियों के वंशज महाराज निषाद राज – उमाशंकर रैकवार इंदौर 77 वर्ष का मत है कि भारत में जितनी भी जाति और उपजाति निषाद वंश की हैं जिनको विभिन्न नाम से जाना जाता है बर्मन ,ढीमर ,रैकवार ,बाथम ,कश्यप, सिंगरहा, भोई ,कहार आदि सभी निषाद वंशज हैं और उनके महाराजा प्राचीन काल में गुहराज निषाद थे । नदी और समुद्र के किनारे रहने वाली यह जातियां हैं जिनका मूल कार्य जल से संबंधित समस्त कार्य करना है प्राचीन समय में आवागमन का मुख्य साधन जल मार्ग से नाव द्वारा हुआ करता था। और नाव चलाने का कार्य जलवंशी निषाद ढीमर केवट बर्मन आदि जातियों का ही रहा है मध्य प्रदेश में निषाद जाति के लोगों की उपजातियां मांझी ,बर्मन ,ढीमर ,कहार और मल्लाह ,मछुआरा, रैकवार आदि नाम से पाई जाती हैं। मध्य प्रदेश के सतना रीवा शहर उत्तर प्रदेश मिर्जापुर शहर से जुड़ा हुआ है प्राचीन समय में जल मार्ग से नावों के माध्यम से उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश के निषाद मछुआरे मांझी जलवंशी समुदाय का जुड़ाव था उनका जल मार्ग द्वारा एक राज्य से दूसरे राज्य में आना-जाना भी था।

 

 

बर्मन जाति के मूल वंशज निषाद राज हैं- निषाद वंश का इतिहास बहुत पुराना है । *निषाद – नि: यानी जल, षाद यानी शासन*। प्राचीन ऋग्वेद में निषादों का उल्लेख है रामायण और महाभारत में कई कई बार निषादों का उल्लेख है महर्षि वाल्मीकि ने जो पहला शब्द लिखा है उसमें निषाद शब्द आया है सिंधु घाटी के निर्माता आध निषाद थे निषाद एक प्राचीन अनार्य वंश है। प्राचीन समय में जल जंगल खनिज के मालिक निषाद जाति के लोग ही थे। निषादों के बहुत सारे दुर्गा के लिए भी थे जिन्हें आमा, आयसी,उर्वा, शारदीय आदि नाम से पुकारा जाता था।

 

 

निषाद जाति का इतिहास क्या है निषाद कौन सी जाति में आते हैं

 

 

अमेरिका के वैज्ञानिकों के अनुसार- अमेरिका के वैज्ञानिक कौन है भगवान श्री राम ने लंका जाने के लिए बनाए गए रामसेतु की पुष्टि कर दी है भारत श्रीलंका के बीच 30 मिल के क्षेत्र में लंबी बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक है लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से ले गए हैं ऐसा अमेरिका के वैज्ञानिकों का मानना है प्रतीत हो रहा है इसकी उम्र लगभग सात हजार साल से भी अधिक पुरानी है। भगवान राम के सेतु की वैज्ञानिक पुष्टि हुई है उनका इतिहास भी ग पुराणों में देखा जा सकता है इसी तरह से भगवान श्री राम के बाल सखा गुहराज निषादराज के किले की पुष्टि भी भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई है उत्तर प्रदेश के प्रयागराज श्रृंगवेरपुर में भगवान श्री राम के बाल सखा गुहराज निषादराज का किला था।

 

 

बर्मन कौन सी जाति में आते हैं?

 

 

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