निषाद जाति का इतिहास क्या है निषाद कौन सी जाति में आते हैं

आप हम अपने लेख में निषाद जाति का इतिहास बता रहे हैं आखिर यह जाति कौन सी जाति में आती है निषाद जाति भारतवर्ष की सबसे प्राचीनतम जातियों में से एक है जिसके बड़े प्रमाण भी मिले हैं निषाद जाति का इतिहास अति प्राचीनतम है जहां एक ओर हिंदुओं के प्रमुख ग्रंथ रामायण में निषादराज का उल्लेख मिलता है तो वहीं निषाद जाति के होने के प्रमाण उत्तर प्रदेश प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर में खुदाई के दौरान इतिहासकारो को मिलें हैं निषाद राज के किले की दीवारें मिली है रामायण काल में निषादों की अपनी एक अलग सत्ता एवं संस्कृति थी निषाद एक जाति मात्र नहीं है बल्कि चारों वर्ण में से अलग “पंचम वर्ण” भी है महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास ,भक्त प्रहलाद और रामसखा गुहराज निषाद जैसी महान आत्माओं ने इस जाति को सुशोभित किया है । नदी के किनारे और समंदर के किनारे रहने वाले जलवंशियों को निषाद जाति कहा जाता है जो जल से संबंधित समस्त कार्य और व्यापार सदियों से करते आ रहे हैं निषाद जाति मांझी,मझवार, मछुआरा, केवट, ढीमर, मल्लाह, कश्यप,कहार , कछार, आदि उपजातियां निषाद जाति की है । नाव चलाना,मछली पालन, सिंघाड़ा उगाना और उसका व्यापार करना, निषाद जाति का प्रमुख व्यवसाय सदियों से रहा है। यह जाति संपूर्ण भारत वर्ष में अलग अलग उपजातियों के नाम से जानी जाती है बिंद,बिनाके,सिगरहा, वर्मा, आदि है।

(श्रृंगवेरपुर के किले में भारत सरकार द्वारा लगाई गई शिलालेख)
भारत सरकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार निषाद जाति का इतिहास –श्रृंगवेरपुर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में है श्रृंगवेरपुर अब सिंगरौर के नाम से जाना जाता है श्रृंगवेरपुर गंगा नदी के तट पर बाएं किनारे पर स्थित है यह प्रयागराज से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम में है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस पुरातत्व की सांस्कृतिक अनुक्रम को जानने के लिए बड़े पैमाने पर उत्खनन किया यह उत्खनन 1975 से लेकर 1986 तक के. पी .सिंह सौंदरा और के. एन.दीक्षित के निर्देशन में किया गया उत्खनन रामायण स्थलों के पुरातत्व परियोजना के तहत किया गया श्रृंगवेरपुर का इतिहास 12वीं शताब्दी ईसा पूर्व से प्रारंभ होता है उत्खनन से प्राप्त गेरूए रंग के बर्तनों के साथ ब्लैक एंड रेड बेयर और बर्निश्ड वेयर तथा पेटेंड ग्रे वेयर के कुछ टुकड़े के प्रमाण भी मिले हैं दसवीं शताब्दी ईसा पूर्व N.B.P. वेयर, 7 शताब्दी ईसा पूर्व रेड वेयर, पहली शताब्दी ईसा पूर्व के मृद भाण्ड के अवशेष भी मिले हैं।

भारतीय पुरातत्व द्वारा खुदाई में मिले निषाद राज के बड़े प्रमाण-श्रृंगवेरपुर में खुदाई के दौरान लगभग 250 मीटर लंबा एक बड़ी ईंटों से निर्मित तालाब भी मिला जिसे पहली शताब्दी ईसवी में बनवाया गया था यह तालाब 2000 साल पहले की भारतीय हाइड्रोलिक इंजीनियरों के कौशल को दर्शाता है जो अद्भुत निर्माण का एक उदाहरण है जिसमें गंगा नदी के पानी को शुद्ध करने के पश्चात पीने योग्य बनाया जाता था खुदाई में यह भी पता चला कि भारी बाढ़ के कारण श्रृंगवेरपुर की बस्ती उजड़ गई थी और ईंटों से निर्मित तालाबों की दीवार भी नष्ट हो गई थी इसके पश्चात बस्ती फिर से अन्य हिस्सों में बस गई जो गुप्त काल के राजपूत काल, उत्तर मध्यकाल ,ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश काल के दौरान भी बसी रही वास्तव में श्रृंगवेरपुर का एक बड़ा हिस्सा आज भी अब स्थित है जिसे सिंगरौर गांव के नाम से जाना जाता है।

इंदौर मध्यप्रदेश के उमाशंकर रैकवार (77 वर्ष )के अनुसार निषाद जाति – भगवान श्री राम और भगवान निषाद राज का घनिष्ठ संबंध है श्रृंगवेरपुर में भगवान निषादराज का मंदिर भी है और किला भी है हजारों वर्ष पुरातन काल का किला है श्रृंगी ऋषि के नाम से श्रृंगवेरपुर बसा हुआ है श्रृंगी ऋषि गुहराज निषादराज के काका थे तीरथ राज निषाद के भाई थे। पुराणों ग्रंथों में वर्णन है कि भगवान श्री राम और निषादराज अभिन्न बाल सखा थे गहरे मित्र थे। श्रृंगी ऋषि ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ श्रृंगवेरपुर में कराया था गुरु वशिष्ठ से जब राजा दशरथ ने कहा कि तीन रानियां है लेकिन कोई संतान नहीं है तो उन्होंने सुझाव दिया कि श्रृंगी ऋषि बहुत महान तपस्वी हैं उनके द्वारा श्रृंगवेरपुर में पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराया जाएगा और संतान की प्राप्ति होगी राजा दशरथ श्रृंगवेरपुर पहुंचे थे और श्रृंगी ऋषि द्वारा पुत्र कामेष्टि यज्ञ संपन्न कराया गया यज्ञ की जो भस्म तीनों रानियां को प्रसाद के रूप में दी गई थी उसके पश्चात फिर श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण भारत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ यह निषादों का सनातनी इतिहास है ।
राजा दशरथ की दत्तक पुत्री का विवाह श्रृंगी ऋषि से हुआ था – उमाशंकर रैकवार (77 वर्ष)आगे बताते हैं अयोध्या नरेश राजा दशरथ की दत्तक पुत्री शांता थी भगवान श्री राम की बहन थी शांता का विवाह विवाह श्रृंगी ऋषि से कराया गया था। उत्तर प्रदेश में प्रयागराज से 35 किलोमीटर दूर श्रृंगवेरपुर बसा हुआ है जहां हजारों वर्ष पुराना पुरातन किला है 3 किलोमीटर लंबा चौड़ा किला है केंद्रीय भारत सरकार द्वारा पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई कराई थी श्रृंगवेरपुर पहुंचकर और वहां जाकर अवलोकन किया जा सकता है वहां शिलालेख लगे हुए हैं 1975 से लेकर 1986 तक श्रृंगवेरपुर में खुदाई करवाई गई थी और गंगा नदी के किनारे भगवान श्री राम जब 14 वर्ष के वनवास काल में पहुंचे थे निषाद राज ने पर्ण कुटी बनाकर उन्हें वहां ठहराया श्री राम ने वहां शयन भी किया था वह स्थान आज भी मौजूद है केवट महाराज जिनका नाम नत्था केवट था उन्होंने गंगा नदी के किनारे श्री राम के चरण कमल पखारे थे भगवान निषादराज ने नत्था केवट से कहा कि श्री राम माता सीता और लक्ष्मण को गंगा पार अपनी नाव में बैठाकर करा दें तो उन्होंने सबसे पहले श्री राम के चरण धोने का आग्रह किया था भगवान श्री राम की अनुमति से नत्था केवट ने उनके चरण धोए और वह स्थान रामचौरा घाट के नाम से जाना जाता है।
मध्य प्रदेश में निषाद जाति की समाहित उपजातियां– उमा शंकर रैकवार के अनुसार पांचवा जो वर्ण जनजाति कहलाता है वह आदिवासी निषाद वंश समुदाय के लोग हैं निषाद की उपजातियां में मांझी भी शामिल है मांझी जो नदी के किनारे निवास करता है नदी के किनारे खेती करता है नाव चलाता है मछली पालन करता है मध्य प्रदेश के अंदर भी मांझी जनजाति के लोग हैं मां की जनजाति की समाहित उपजातियां केवट माला ढीमर आदि हैं 1950 की विंध्य क्षेत्र के चीफ सेक्रेटरी की रिपोर्ट कहती है जनजाति वर्ग के लोग हैं माझी जनजाति भारतीय संविधान 1950 के तहत अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजाति में अधिसूचित है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का मत है कि श्रृंगवेरपुर का नाम ऋष्पशंग से लिया गया है ऐसा कहा जाता है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए आमंत्रित किया था जिसके परिणामस्वरूप राजा दशरथ की तीन रानियां गर्भवती हुई और उन्होंने श्री राम, लक्ष्मण ,भरत, शत्रुघ्न को जन्म दिया श्रृंगवेरपुर एक शुभ स्थान है क्योंकि श्री राम के 14 वर्ष के वनवास दौरान यहां स्थानीय सरदार गुहराज निषाद की मदद से श्री राम उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण ने गंगा नदी पार की थीं।
नोट – यह एक विश्वसनीय लेख है जो श्रृंगवेरपुर में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा लगाए गए शिलालेख और समाज के वरिष्ठ बुद्धिजीवी द्वारा प्राप्त जानकारी एवं कुछ शासकीय प्रमाणिक तथ्यों पर आधारित शुद्ध लेख है ।