भारतीय कारागार व्यवस्था को समझाइए

भारतीय कारागार व्यवस्था को समझाइए
Bhartiya karagaar vyavastha ko samjhiye

 

Bhartiya karagaar vyavastha ko samjhiye
Bhartiya karagaar vyavastha ko samjhiye

 

 

भारत में प्राचीन समय से ही एक सुनियोजित कारगर व्यवस्था के अस्तित्व प्रमाण आदि कालीन ग्रंथों में मिलते हैं बृहस्पति ने कैदियों को बंद कारागारों में रखे जाने पर जोर दिया था परंतु मनु ने इसका समर्थन नहीं किया कौटिल्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ अर्थशास्त्र में यह उल्लेख किया कि शासन द्वारा किले के सुदृढ़ बुर्जों का बंदी गृहों के रूप में प्रयोग किया जाता था अपराधियों को जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता था कौटिल्य ने अपने समय के शासको को परामर्श दिया की बंदी ग्रह को सड़क के किनारे बनाया जाना चाहिए ताकि सड़क पर चलने फिरने वाले राहगीरों को देखकर कैदी अपना अकेलापन दूर कर सकें आध्यात्मिकता तथा प्रधानता दी जाने के कारण उसे समय बंदी गृहों में कैदियों को पश्चाताप आत्म चिंतन तथा आत्म शुद्धि करने के लिए पर्याप्त अवसर देने के उद्देश्य से एकांत में रखे जाने पर बोल दिया गया इसलिए छोटी-छोटी कोठियों में एकांत कारावास में रखा जाता था ।

 

 

भारत में हिंदू तथा मुस्लिम शासको के शासनकाल में दंड का उद्देश्य प्रतिरोध के सिद्धांत पर आधारित था अतः मृत्युदंड फांसी ,अंग विच्छेद, कोड़े मारना, दागना,भूख प्यास से तड़पा कर मारना अधिक दंड के तरीकों को अपनाया जाता था मुगल शासन काल में अपराधी को दीवार के जिंदा चुनवा देने का दंड भी प्रचलित था 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत में ब्रिटिश राज्य स्थापित हुआ अंग्रेजों ने भारतीय कारगारों की देनी है दशा में सुधार करने का प्रयत्न किया ताकि करावासी जीवन में यातनाओं को काम किया जा सके।

 

भारतीय कारगर व्यवस्था में सुधार- सन 1836 में भारतीय कारगर व्यवस्था में सुधार प्रारंभ हुआ एक कारगर जांच समिति का गठन किया गया जिसे कैदियों को सड़कों के निर्माण कार्य में मजदूर के रूप में उपयोग करना बंद किया इसके बाद 1938 में मेंकाले ने एक कारागार सुधार समिति का गठन किया मेकाले ने निम्नलिखित सुझाव दिए।

 

1.एक केंद्रीय बंदिग्रह की स्थापना की जाए जिसे 1000 कैदियों को रखने की व्यवस्था हो इसमें केवल ऐसे कैदी रखे जाएं जिनकी सजा एक वर्ष से अधिक अवधि की हो।

 

2.महिला अपराधियों को अलग से कारागार में रखने की व्यवस्था की जाए प्रति के सभी कारागारों में एक कारगर निरीक्षक की नियुक्ति की जाए जो कारागारों पर नियंत्रण कर रख सके।

 

 

द्वितीय कारागार जांच समिति का गठन- सन 1862 में द्वितीय कारागार जाट समिति का गठन किया गया जिसे कारागारों की साफ सफाई और अस्वास्थ्यकारी दशा पर सुधार लाने के सुझाव दिए साफ-सफाई के अभाव में कारागारों में बीमारियां फैलती थी जिसके कारण कैदियों की असमय मौत हो जाती थी इसलिए इस समिति ने कैदियों की उचित चिकित्सा भोजन व्यवस्था और साफ सफाई की ओर विशेष ध्यान दिया सन 1966 तक कारागारों में डॉक्टरों की नियुक्ति की जाने लगी।

 

 

भारतीय कारागार अधिनियम 1894 – भारत में सन 1894 में कारगर अधिनियम पारित हुआ जो भारतीय कारागारों की एकरूपता की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि थी इसमें करवासियों के वर्गीकरण के लिए आवश्यक कदम उठाए गए कोड़े मारने जैसे आमानवीय दंड प्रथा को समाप्त किया गया 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में बाल एवं किशोर अपराधियों की दशा में विशेष ध्यान दिया गया घर अपराधियों के संपर्क से बचाए रखने के लिए उन्हें बाल सुधार में अलग से रखे जाने की व्यवस्था की गई कैदियों की संख्या निर्धारित की गई।

 

 

भारतीय जेल सुधार समिति– सन 1919 20 में कर सिकंदर कार्डयू की अध्यक्षता में भारतीय जेल सुधार समिति गठित की गई इस समिति ने भारतीय कारागारों के अलावा जापान हांगकांग ब्रिटेन जैसे देशों की कारागार व्यवस्था का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला की कारागार व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि अपराधी की मानसिक दशा में परिवर्तन हो सके वह अपराध ना करने के साथ-साथ अपने भावी जीवन और अपने चरित्र को सुधारने के लिए कृतसंकल्पित हो। भारतीय कारागारों में कठोरता की वजह सुधार का वातावरण निर्मित किया जाना चाहिए कार्डयू का मानना था कि अपराधियों को कठोर व्यवहार से नहीं सुधारा जा सकता बल्कि उनके प्रति मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। कारागार समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें की । कारागार प्रशासन के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की नियुक्ति की जाए अधीक्षक के पदों पर केवल ऐसे व्यक्ति की ही नियुक्ति की जाए जिसे कारागार प्रशासन का पूर्व अनुभव हो। प्रत्येक कारागार में एक चिकित्सा अधीक्षक की नियुक्ति की जानी चाहिए। अपराधियों को परिवार जनों से मिलने उनसे पत्राचार करने, पौष्टिक आहार, पुस्तकालय पहनने के लिए दो जोड़ी वस्त्र, आदि सुविधाएं दी जानी चाहिए।

 

 

पकवासा समिति 1949- जेल सुधार हेतु सन 1949 में पकवासा समिति ने करवासियों से सड़क निर्माण कार्य में श्रमिकों के रूप में काम लिए जाने में की अनुमति दे दी ए-श्रम कार्ड के लिए करवासियों को मजदूरी दी जाती थी और उन पर न्यूनतम नियंत्रण रखा जाता था कर अवधि में करवासी का आचरण तथा व्यवहार अच्छा रहने पर उसकी सजा में कटौती का प्रावधान भी रखा गया जिसे *गुड टाइम अलाउंस* कहा जाता था। स्वतंत्रता के पश्चात गत 50 वर्षों में भारतीय कारगर व्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए वर्तमान समय में कारगर व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य अपराधियों से समाज का संरक्षण करना तथा अपराधियों को अपराध कम से दूर रखने के प्रयास करते हुए उनमें सुधार करना है करवासी की हर संभव सहायता करके उसे समझ में पुनर्वासित करना वर्तमान कारागार पद्धति का प्रमुख उद्देश्य है।

 

 

स्वतंत्रता के बाद कारागार व्यवस्था-भारत के संविधान के अंतर्गत कारागार को पुलिस तथा शांति व्यवस्था के साथ राज्य सूची में सातवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया है अतः केंद्र सरकार पर कारगर व्यवस्था के आधुनिकी करण का कोई उत्तरदायित्व नहीं है । सन 1950 के बाद करवासियों के मनोचिकित्सक तथा मनोवैज्ञानिक पद्धति की से उपचार की ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा जैसे कि प्रोफेसर बोल्ड ने कहा कि वर्तमान में कारावासियों की पुनर्वास संबंधी गतिविधियों में दो बातों की प्रधानता दी जाती रही है उनका मनोचिकित्सक पद्धति से उपचार तथा उनके लिए शैक्षणिक तथा व्यावसायिक कार्यक्रम । भारत के आधुनिक कारागारों में कारावासियों के भोजन,चिकित्सा ,व्यायाम प्रशिक्षण ,शिक्षा मनोरंजन, परिवार जनों से मुलाकात आदि की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। कारागारों में सफाई पर उचित ध्यान दिया जाता है पैरोल नियमों को अधिक उदार बनाया गया ताकि करवासी का उसके परिवार जनों से संपर्क बना रहे और वह विवाह मृत्यु बीमारी आदि विशेष अवसरों पर उनके साथ रह सके खेती का व्यवसाय करने वाले कैदियों को कृषि कार्य हेतु पैरोल पर रहा किया जा सकता है।

 

 

राष्ट्रीय कारागार आयोग की पहल-जिलों के सुधार हेतु सन 1980 में गठित न्याय मूर्ति ए एन मुल्ला की अध्यक्षता में जस्टिस मुल्ला समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक राष्ट्रीय कारागार आयोग का सुझाव दिया जो भारतीय जेलों के आधुनिकीकरण की प्रगति का निरंतर मूल्यांकन करता रहे। मुला समिति ने दिल्ली के तिहाड़ जेल तथा आगरा के संप्रेक्ष गृह में बाल अपराधियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार तथा अनाचार के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए इन्हें घर अपराधियों से पूर्णतया अलग रखे जाने का सुझाव दिया इसके परिणाम स्वरुप 1986 में बाल न्याय अधिनियम पारित हुआ जिसमें किशोर अपराधियों के विचरण तथा अभिरक्षा संबंधी विस्तृत प्रावधान है। भारत सरकार ने फरवरी 1988 में महिला करवासियों की स्थिति में सुधार के लिए न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई। इस समिति ने महिला अपराधियों के लिए और अधिक महिला पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की अनुशंसा की।

 

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