मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय जबलपुर ने मत्स्य प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया

मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर में उद्यमियों एवं मत्स्य कृषकों के लिए प्रोद्योगिकी प्रदर्शन के माध्यम से क्षमता विकास एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एन.बी.एफ.जी.आर.) लखनऊ द्वारा अनुसूचित जनजाति योजना के अंतर्गत वित्त पोषित किया गया था। इस कार्यक्रम में जबलपुर, मण्डला, शहडोल, अनूपपुर एवं सिवनी जिलों के 100 से अधिक मत्स्य कृषक, छात्र छात्रों एवं उद्यमियों सम्मिलित हुए।
मत्स्य पालन कार्यक्रम कुलगुरू के मार्गदर्शन में आयोजित- विश्वविद्यालय के माननीय कुलगुरू डॉ. मनदीप शर्मा के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ. उत्तम कुमार सरकार निर्देशक एन.बी.एफ.जी.आर, लखनऊ के मार्गदर्शन में समन्वयक डॉ. माधुरी शर्मा ने तैयार किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. एस. के. महाजन, अधिष्ठाता, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय रहे। कुलगुरु डॉ मनदीप शर्मा ने मार्गदशित किया कि कैसे मत्स्य कृषि में नई तकनीकी मूल्य वर्धित उत्पाद मछली के ककटेल ,फिश फिंगर, फिश चकली और मछली अचार बनाने की विधि के बारे में बताया। इसके साथ साथ मत्स्य पालन प्रक्षेत्र में हैचरी स्टाकिग के बारे में समझाया गया।
ये अथिति विशेषज्ञ रहे उपस्थित – मत्स्य कृषि पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. एस.एस.तोमर उपस्थित रहे तथा उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम मत्स्य क्षेत्र में आगे के लिए बहुत ही आवश्यक है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में अभय महाजन जी संगठन सचिव पं. दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट उपस्थित रहे। डॉ. एस.आर. के. सिंह, निदेशक आई.सी.ए.आर. अटारी, श्रीमती शशिप्रभा धुर्वे संयुक्त संचालक फिशरीज, जबलपुर संभाग विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम में अध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार नायक, संचालक विस्तार शिक्षण सेवाऐं उपस्थित रहे। कार्यक्रम डॉ. एस.के. जोशी, संचालक अनुसंधान सेवाएँ उपस्थित रहे। कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ. राजीव सिंह प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. शशिभूषण, वरिष्ट वैज्ञानिक, डॉ. अनुतोप पारिया, डॉ. सत्येन्द्र कुमार, श्री उमेश कुमार सिगोरे, डॉ. प्रीति मिश्रा एवं श्री शिवमोहन सिंह ने विविभन्न विषयों पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में मत्स्य पालकों को मछली के जाल, मछली के बीज तथा जल की गुणवत्ता जाँचने के लिए किट प्रदान की गई तथा सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
कार्यक्रम की समन्वयक डॉ. माधुरी शर्मा, सह प्राध्यापक, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय एवं सह-समन्वयक डॉ. प्रीति मिश्रा रही। कार्यक्रम में डॉ. शशि प्रधान, डॉ. शिवांगी शर्मा, शिवानी पाठक, प्रियंका गौतम, श्री सत्येन्द्र कटारा, अनिल केवल, प्रतीक कुमार तिवारी, लक्ष्मी प्रसाद कोरी, अर्चना शर्मा, बीरबल कुलस्ते एवं इमरान खान का महत्वपूर्ण सहयोग रहा।
FAQ.
1.मछली पालन के कितने प्रकार होते हैं
मछली पालन के तीन प्रकार होते हैं मोनोकल्चर ,पाॅलीकल्चर और मोनोसेक्स कल्चर। मछली पालन की तीन तरीके होते हैं समुद्री मछली पालन , पिंजरा मछली पालन, अर्धसघन मछली पालन।
2.मत्स्यामलन कैसे किया जाता है
मत्स्य पालन करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
1.तालाब बनाने के लिए अच्छी मिट्टी वाली जगह का चुनाव करना चाहिए।
2. तालाब की तैयारी के लिए तालाब कैसे सभी जलीय पौधे खाऊ और छोटी-छोटी मछलियों को निकाल देना चाहिए।
3.तालाब में पर्याप्त मात्रा में मछलियों को भजन प्राप्त हो इसलिए हर मां 75 किलो एनपी खाद और गोबर की खाद डालें।
4. तालाब में पानी का स्तर समय-समय पर बदलते रहना चाहिए।
3.मत्स्य पालन की विशेषताएं क्या है
यह एक फायदेमंद जलीय कृषि है, यह भोजन की गुणवत्ता को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो पौष्टिक आहार की कमी को भी पूरा करती हैं ,मछलियों के तेल से दवाइयां बनाई जाती हैं, मत्स्य पालन का आदेश की अर्थव्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका है।
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