मानसिक मंदितो को आत्मनिर्भर बनाकर सम्मान से जीना सिखा रही चैतन्य सेवा संस्था जबलपुर

दिव्यांग बच्चों को सिर्फ प्यार की जरूरत होती है और इसी के जरिए उन्हें समर्थ मजबूत बनाया जा सकता है यदि ऐसे बच्चों का बड़ों को कुछ करने के लिए प्रेरित किया जाए तो वह एक स्वस्थ व्यक्ति से भी आगे बढ़ सकते हैं हम बात कर रहे हैं मानसिक रूप से समर्थ और कमजोर बच्चे बच्चियों को सिर्फ लाड़ प्यार के जरिए अपना बनाया जा सकता है यह कहना है चैतन्य सेवा संस्था जबलपुर की प्रमुख सुलेखा क्षत्रिय का जिन्होंने ऐसी बच्चियों का दर्द समझा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की पहल की जो दिव्यांग है मानसिक मंदित है ऐसी बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाने और मुख्य धारा में रहकर आत्म सम्मान के साथ जीना सिखाने के लिए चैतन्य सेवा संस्थान की स्थापना की।

सुलेखा क्षत्रिय बताती हैं कि आज से 15 साल पहले इस संस्था की स्थापना साल 2010 में की थी ताकि दिव्यांगों की सेवा सहायता कर सके मैंने देखा कि दिव्यांग बच्चियों का लोग तिरस्कार कर रहे थे यह देखकर मुझे भीतर से बहुत ठेस पहुंची गहरा आघात लगा मैंने मासूमों का दर्द समझा और इन विशेष बच्चियों का जीवन सुधारने के लिए मैंने ठानी सबसे पहले हमने ऐसी दिव्यांग बच्चियों को खोजा फिर उनके परिजनों से मिलकर उन्हें स्पेशल होने का एहसास कराया फिर उन बच्चियों को शिक्षा होना और कल के प्रति रुझान देखकर सहायता करना प्रारंभ की दो-तीन साल निरंतर प्रयास और सेवा सहयोग करने का परिणाम यह हुआ की परिवार पर आश्रित रहने वाली अधिकांश बच्चियों खुद को कम करने के अलावा छोटा-मोटा अन्य काम करने लगी थी जिससे मुझे प्रेरणा मिलती गई और मैं आगे बढ़ती गई।
अब दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने का एक कदम- जो बच्चें पहले ना खाना खा पाते थी ना खुद से ब्रश करते थें उन्हें अपने हर काम के लिए परिवार जनों की सहायता की आवश्यकता होती थी अब वही बच्चे बच्चियां व्यायाम कर रही हैं खेल खेल रही हैं खाना बनाने के तौर तरीके सीख रही हैं पेपर बैग बना लेती हैं पेंटिंग कर लेती हैं और स्कूल जाने वाली बच्चियों डांस भी कर लेती हैं। अब उन्हें काम सिखा रही है ताकि काम सीखने के बाद रोजगार की व्यवस्था भी कर रही हैं ताकि वह आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन यापन कर सकें यह सराहनीय कार्य कर रही है यह करिश्मा चैतन्य सेवा संस्थान की सुलेखा क्षत्रिय ने किया है उनका मानना है कि दिव्यांग बच्चे बच्चियों को सिर्फ प्रेम की आवश्यकता होती है और इसी के जरिए उन्हें समर्थ और मजबूत भी बनाया जा सकता है यदि ऐसे बच्चों को प्रेम के साथ कुछ करने के लिए प्रेरित किया जाए तो वह एक स्वस्थ व्यक्ति से भी आगे बढ़ जाते हैं लेकिन इसके लिए अपनेपन की भावना होना बहुत जरूरी है।

जिनके प्रयासों से आज जबलपुर सहित अन्य शहरों कटनी छिंदवाड़ा ,परासिया, पाटन में भी दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल संचालित कर रही है जिसमें बिना किसी सरकारी सहयोग के दिव्यांग विशेष बच्चियों को रहने खाने व शिक्षा की निशुल्क व्यवस्था की जाती है इन स्कूलों में दिव्यांग बच्चों को ट्रेनिंग देने वाले ट्रेनर भी पूर्ण प्रशिक्षित और एजुकेटेड हैं आठ लोगों के स्टाफ में बुजुर्ग विधवा गरीब वर्ग की महिलाएं मानसिक मंदितो को प्रशिक्षित कर रही हैं उनकी देखभाल कर सेवा सहायता कार्य कर रही हैं। अब उन्हें काम सीखने के बाद रोजगार की व्यवस्था भी कर रही हैं।
ऐसे मिलती है सहायता- संस्कारधानी वास अपना जन्मदिन त्योहार और पुण्यतिथि आदि अवसरों पर आते हैं इन बच्चों के साथ खुशियां बांटते हैं जन्मदिन मनाते हैं त्यौहार मनाते हैं और सेवा सहायता करते हैं बच्चों को जरूर की हर चीज जैसे कच्चा अनाज कपड़े खिलौने आदि सामग्री बच्चों को सहायता के रूप में दे जाते हैं इसके साथ स्कूल की बाकी जरूरत को पूरा करने के लिए दोस्त परिजन की सहायता लेते हैं और स्वयं भी पूरा खर्च उठाते हैं।

विशेष शिक्षा प्रशिक्षण– डाक्टरो मनोवैज्ञानिक और अन्य विशेषज्ञों की एक टीम बच्चों का मूल्यांकन करती है और व्यक्तिगत विकास योजना तैयार करती है विशेष बच्चों के लिए प्रशिक्षित शिक्षक विशेष पाठ्यक्रम के माध्यम से उन्हें पढ़ते हैं शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना इसलिए दैनिक जीवन के कौशल विशेष बच्चों को सिखाए जाते हैं जिसमें भोजन करना कपड़े पहनना स्वच्छता आदि सिखाया जाता है।
बौद्धिक रूप से अक्षमता का कोई सीधा इलाज नहीं है लेकिन विभिन्न उपचार और प्रशिक्षण से बच्चों की क्षमताओं को विकसित किया जाता है एक बहुत अनुशासनात्मक टीम बच्चों की देखभाल करती है आवश्यकता पड़ने पर बच्चों को भाषण चिकित्सा शारीरिक चिकित्सा और अन्य थेरेपी दी जाती है।
बच्चों के परिवार के लिए सहायता- माता-पिता और भाई बहनों को भी भावनात्मक सहायता और काउंसलिंग की आवश्यकता होती है उन्हें काउंसलिंग प्रदान करते हैं ताकि अच्छा सकारात्मक माहौल बनाया जा सके ।
माता-पिता के लिए सुझाव- धैर्य रखें बच्चों को सिखाने में समय अधिक लग सकता है इसलिए धैर्य रखने की आवश्यकता है।
नियमित दिनचर्या-एक बच्चे के लिए एक नियमित दिनचर्या का पालन करें ।
प्यार और समर्थन- बच्चों को निरंतर प्यार और समर्थन देना चाहिए उन्हें बताएं कि वह मूल्यवान है।
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