जबलपुर से हुआ झंडा सत्याग्रह ,फिर भारत में मनाया गया झंडा दिवस

जबलपुर से हुआ झंडा सत्याग्रह ,फिर भारत में मनाया गया झंडा दिवस

 

 

Jabalpur se hua jhanda satyagrah fir Bharat me Manaya gaya jhanda Divas
Jabalpur se hua jhanda satyagrah fir Bharat me Manaya gaya jhanda Divas

 

“झंडा” किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता और सत्ता का सर्वोच्च प्रतीक है,इसलिए तो स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस – राष्ट्रीय पर्व में क्रमशः ध्वजारोहण और ध्वज फहराया जाता है,इसलिए भारतीय तिरंगे झंडे का महत्व समझा जाना चाहिए उसे फैशन की वस्तु नहीं समझना चाहिए – वर्ष में केवल दो दिन ही झंडे का महत्व नहीं है।

 

अब देखिये न तिरंगे झंडे को फहराने के लिए जबलपुर से ही सर्वप्रथम “झंडा सत्याग्रह” का शुभारंभ हुआ और जिसका संपूर्ण भारत में विस्तार हुआ,परंतु कितना संघर्ष हुआ जब जबलपुर में यूनियन जैक की जगह तिरंगा फहराया गया। अत्यंत गर्व और गौरव का विषय है कि जबलपुर से 18 मार्च 1923 को झंडा सत्याग्रह का शुभारंभ हुआ, और नागपुर से इसने व्यापक रुप लिया,जिसका 18जून 1923 को “झंडा दिवस” के रुप में देशव्यापीकरण हुआ और मनाया गया था। 17 अगस्त 1923को अपनी सफलता की कहानी लिखता हुआ, समाप्त हुआ।

 

 

Jabalpur se hua jhanda satyagrah fir Bharat me Manaya gaya jhanda Divas
Jabalpur se hua jhanda satyagrah fir Bharat me Manaya gaya jhanda Divas

 

 

झंडा सत्याग्रह की पृष्ठभूमि और इतिहास आरंभ अक्टूबर 1922 से ही हो गया था जब असहयोग आंदोलन की सफलता और प्रतिवेदन के लिए कांग्रेस ने एक जांच समिति बनाई थी और वह जबलपुर पहुंची तब समिति के सदस्यों को विक्टोरिया टाऊन हाल में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया और तिरंगा झंडा (उन दिनों चक्र की जगह चरखा होता था) भी फहरा दिया गया। समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गईं.. हंगामा हुआ और भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने सफाई देते हुए आश्वस्त किया कि अब भारत में किसी भी शासकीय या अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा नहीं फहराया जाएगा। इसी पृष्ठभूमि ने झंडा सत्याग्रह को जन्म दिया।

 

 

मार्च 1923 को पुनः कांग्रेस की एक दूसरी समिति रचनात्मक कार्यों की जानकारी लेने जबलपुर आई जिसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, जमना लाल बजाज और देवदास गांधी प्रमुख थे। आप सभी को मानपत्र देने हेतु म्युनिसिपल कमेटी प्रस्ताव कर डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हेमिल्टन को पत्र लिखकर टाऊन हाल पर झंडा फहराने की अनुमति मांगी लेकिन हेमिल्टन ने कहा कि साथ में यूनियन जैक भी फहराया जाएगा इस बात पर म्युनिसिपैलटी के अध्यक्ष कंछेदी लाल जैन तैयार नहीं हुए। इसी बीच नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पं. सुंदरलाल ने जनता को आंदोलित किया कि टाऊन हाल में तिरंगा अवश्य फहराया जाएगा। तिथि 18 मार्च तय की गई क्योंकि महात्मा गांधी को 18 मार्च 1922को जेल भेजा गया था और 18मार्च 1923 को एक वर्ष पूर्ण हो रहा था। 18 मार्च को पं. सुंदरलाल की अगुवाई पं. बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे जी, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान,माखन लाल चतुर्वेदी, एवं नाथूराम मोदी जी के साथ लगभग 350 सत्याग्रही टाऊन हाल पहुंचे और उस्ताद प्रेमचंद ने अपने 3साथियों सीताराम जादव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन ने मिलकर टाऊन हाल पर तिरंगा झंडा फहराया दिया। कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करा दिया जिसमें श्रीयुत सीताराम जादव के दांत तक टूट गए थे, सभी को गिरफ्तार किया और तिरंगा को पैरों तले कुचल कर जप्त कर लिया। अगले दिन पं सुंदरलाल जी को छोड़कर सभी मुक्त कर दिए गए इन्हें 6माह का कारावास हुआ उसके बाद से इन्हें तपस्वी सुंदरलाल जी के नाम से जाना जाने लगा। इस सफलता के उपरांत उत्साहित होकर नागपुर से व्यापक स्तर पर झंडा सत्याग्रह का आरंभ एवं प्रसार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व हुआ जिसमें जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने न केवल भाग लिया वरन् गिरफ्तारी दी।

 

 

Jabalpur se hua jhanda satyagrah fir Bharat me Manaya gaya jhanda Divas
Jabalpur se hua jhanda satyagrah fir Bharat me Manaya gaya jhanda Divas

 

 

श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने झंडा सत्याग्रह में अपनी गिरफ्तारी दी। 18 जून को झंडा सत्याग्रह का देशव्यापीकरण हुआ और झंडा दिवस मनाया गया। झंडा सत्याग्रह व्यापक स्तर पर फैल गया और आखिरकार 17अगस्त 1923 को 110 दिनों के संघर्ष उपरांत अपना लक्ष्य प्राप्त कर झंडा सत्याग्रह वापस ले लिया गया। इस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय झंडे को ले जाने का अधिकार प्राप्त हुआ और नागपुर के सत्याग्रही मुक्त कर दिए गए परंतु जबलपुर के सत्याग्रही अपनी पूरी सजा काटकर ही वापस आए।जिसमें नाथूराम मोदी दृढ़ संकल्प के प्रतीक रहे और उन्हें 1923 के झंडा सत्याग्रह में डेढ़ वर्ष का सश्रम कारावास हुआ।

 

 

कारावास की कठिन यातनाओं के कारण इनके रक्त में खराबी उत्पन्न हो जाने पर जेल से छूटने के बाद अधिक समय तक जीवित न रह सके।हिंदी भाषी मध्य प्रदेश से 1265 सत्याग्रहियों को कारावास की सजा भुगतनी पड़ी। इस तरह भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय झंडे की मानरक्षा और फहराने का श्रेय जबलपुर के महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जाता है।

 

नोट -यह लेख भारत के जाने-माने इतिहासकार डॉ.आनंद सिंह राणा द्वारा बताई गई जानकारी पर आधारित है