आपातकाल के दौरान मीसा क्या है? आपातकाल के दौरान जेल में बंद मीसा बंदी मानव सेन की कहानी

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आपातकाल के दौरान मीसा क्या है? आपातकाल के दौरान जेल में बंद मीसा बंदी मानव सेन की कहानी

 

 

 

Aapatkaal ke dauran Misa kya hai aapatkaal ke dauran jail me band mishabandi Manav Sen
Aapatkaal ke dauran Misa kya hai aapatkaal ke dauran jail me band mishabandi Manav Sen

 

 

 

19 दिन में तीन बार गिरफ्तार हुये मानव सेन ने सुनाई दास्तान – ए- बयाँ – 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का समय देश में आपातकाल का रहा है। इसे काला कानून’ भी कहा गया । आपातकाल का सीधा सा अर्थ था देश की जनता के मूलभूत अधिकारों को समाप्त. कर देना। आपातकाल अर्थात काँग्रेस विरोधी नेताओं और कार्यकत्ताओं को जेल में बंद करना देना । आपातकाल का मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों अधि-कारियों, स्वयंसेवकों, समाजसेवकों, चत्रकारों तथा अधि-वक्ताओं को कारागार में बंद कर यातनायें देना । आपात काल का तात्पर्य हर उस व्यक्ति पर जुल्म ढाना जो काँग्रेस पार्टी की नीतियों से असहमति जताये। आपातकाल का मीनिंग जनता द्वारा केन्द्र की सरकार को दी गई शक्तियों का खुले आम दुरुपयोग करना। आपातकाल यानि तत्काली प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के द्वारा सरेआम शुण्डा गर्दी का प्रदर्शन करना ।

 

 

जय न्याय – 21 मार्च को देश में आपातकाल लग के 50 वर्ष पूरे हो गये इस अवसर पर स्वदेश अपने पाठकों के लिये एक उन मीसाबंदियों की आपबीती आपको बताने जा रही है, जिन्होंने जेल में रहकर यातनायें झेलीं। ऐसे ही एक भुक्तभोगी विजय नगर जबलपुर निवासी मानव कुमारसेन हैं। इन्होंने सरकारी नौकरी में रहते हुये 1 साल 6 महीने 10 दिन जेल में गुजारे थे आप सभी को अपने अनुभव बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं।

 

विजय नगर जबलपुर निवासी मानव सेन ने बताया की 11 सितम्बर 1975 को उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी उस समय हुई जब वे अपने कार्यालय में बैठकर सरकारी कामकाज पूरा कर रहे थे। श्री सेन ने बताया की 23 वर्ष की उम्र में उनकी सरकारी नौकरी लगी थी। वे लोक स्वास्थ अभियांत्रिकी विभाग में (पीएच.ई.) सब इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुये थे। उनकी पहली पोस्टिंग, राजनंदगांव में हुई थी। दोपहर में चार बजे स्थानीय पुलिस ने उन्हें उनकी सरकारी कार्यालय से गिरफ्तार कर लिया। रात भर थाने में बंद रखा। धारा 151 के तहत उन पर कार्रवाई की गई। दूसरे दिन मुझे अदालत में पेश किया गया, जहाँ से मुझे जमानत पर रिहा कर दिया गया।

 

 

लेकिन इसी दिन मुझे रात 9 बजे पुनः पुलिस ने घर से गिरफ्तार कर लिया। और अगले दिन अर्थात 13 सितम्बर को स्थानीय जेल भेज दिया गया। इस बार उन्हें भारत रक्षा अधिनियम के उल्लघन का आरोप लगा कर जेल भेजा गया। इस ब्लगे आरोप की पेशी 21 सितम्बर को हुई । न्यायालय ने मुझे रिहा करने के आदेश दिये। जेलर बी. एस. गुप्ता ने मुझे अपने व्यक्तिगत सामान के साथ अपने चेम्बर में बुलवाया। कहा की. तुम्हें न्यायालय के आदेश पर रिहा किया जाता है। अब तुम अपने घर जा सकते हो। मैंने जैसे ही नहीं से चलना शुरु किया, उन्होंने मुझे आवाज देकर रोक दिया और कहा की तुम्हें पुनः गिरफ्तार किया जाता है। मैंने उनसे पूछा की अब किस जुर्म में, तो उन्होने कहा की इस बार तुम्हारे ऊपर मीसा की कारवाई की गई है।

 

 

जोरदार मानसिक आघात लगा – श्री सेन ने बताया की उन्हें जेल में रहते हुये. तीन महीने चार दिन ही बीते थे कि राज्य सरकार से उन्हें नौकरी से निलंबित करने का आदेश प्राप्त हो गया। उन्हें जैसे ही जेलर ने निलंबन का आदेश थमाया बेसे ही उन्हें एक जोरदार धक्का लगा। थोड़ी देर के लिये मन अशांत हो गया। अनायाश ही मन से निकल पड़ा हे भगवान अभी और कितने बुरे दिन दिखायेंगे आप।

 

 

 

तनाव में रहने लगे घर के लोग – इन इन मीसाबंदी ने बताया कयह भी बताया की नौकरी की वजह से उन्हें दूसरे शहर जाना पड़ा। कम उम्र में बर माँ-बाप, भाई-बहनों कसे दूर रहने की पीज़ सभी को झेलना पड़ी। परिवार के सदस्यों को उस समय सबसे ज्यादा दुख हुआ जब उन्हें यह पता चला कि मैं जेल चला गया हूँ। नौकरी से निकाल निलंबित किये जाने की खबर ने तो जैसे उन्हें अंदर से झकझोर कर रख दिया था। मानों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा हो। सभी को समझ में नहीं आया की अब क्या किया जाये। नभी मैं ईश्वर का भजन करते रहे 22 मार्च 1977 को जेल सदस्य उनके छूटने और नौकरी पे वापस आने के इंतजार से रिहा होने तथा नौकरी के निलंबन का आदेश रद्द, होने की खबर ने सभी के चलों में खुशीकों बिखेर दीं।. पूरे परिवार ने भगवान को धन्यवाद दिया।

 

हम सात-आठ लोग एक साथ रहते थे – मानव कुमार सेन ने एक आश्चर्य भरी बताई ।. उन्होंने कहा की आपातकाल के दौरान सिर्फ उन्हीं लोगों को जेल में नहीं ठूंसा गया जो गैर कांग्रेसी थे। बल्कि उन लोगों को भी जेल में रखा गया जो कटुटर कांग्रेसी तो थे किन्तु अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं से उनकी बात नहीं बनती थी। उदाहरण देते हुये उन्होंने बताया की खेरागढ़ के एक कांग्रेसी विधायक की अपनी ही पार्टी के दो वरिष्ठ कार्यकर्ता अधिवक्ता राम कृष्ण तिवारी तथा सुभाष सिंह से तालमेल नहीं बैठ पाया था, इसलिये विधायक ने इन दोंनो को मीसा लगवाकर जेल भिजवा दिया। इसके अलावा दो कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी के भी थे। इसके अलावा राजनंदगाँव की तहसील मोहला मानपुर के राजा लाल श्याम शाह भी बंद थे। कुछ समय के बाद मध्य-प्रदेश विधानसभा के उप नेता यशवंत राव’ मेधावाले भी को भी उन्हीं के साथ बंद कर दिया गया।

 

 

नंगा कर जाँच करते थे – शिव कुमार कुशवाहा की दिये साक्षात्कार में श्री सेन ने बताया की तत्कालीन जेलर बी-एस. गुप्ता जेल में बंद सभी लोगों पर अनावश्यक ही शेब आत करते थे। वे हर नकत्र सभी को यह एहसास कराते रहते थे कि मैं वे जेल के बॉस हैं और जेल में नहीं होगा जो वो चाहेंगे। वो जेल की सुरक्षा के नाम पर मीसा बंदियों को नंगा कर जाँच करवाते थे। इस तरह की जाँच पर सवाल उठाये जाने पर वे कहते थे की सुरक्षा के मद्देनजर यह जरूरी है। श्री सेन के अनुसार उनके एक दोस्त रमेश श्रीवास्तव जो की उन्हीं के साथ सब इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे, उनका पूरा सहयोग मिलता घरे रहा घर-परिवार से दूर रहने के बावजूद सप्ताह में दो’ पोस्ट कार्ड लिखने की छूट होती थी। यही छूट उन्हें नैतिक सम्बल प्रदान करती थी। इन्ही चिट्ठियों के माध्यम से वे अपने परिवार वालों के सम्पर्क में रहते थे। उनकी उन्हें अपनी बात बताया करते थे तथा उनकी सुना करते थे। उन्होंने यह भी बताया की उन्हें सिर्फ दो कम्बल दिये जाते थे एक बिछाने के लिये और एक ओढने के लिये। उन दिनों ठंड कुछ ज्यादा पड़ती थी, एक इससे बचने के लिये एक कम्बल पर्याप्त नहीं होता था। ओढ़ने के लिये और अतिरिक्त कम्बला नहीं दिये जाते थे। मजबूरन कंपकंपाते शरीर को लेकर रात गुजारनी पड़ती थी।

 

वकील शिवाकांत शुक्ला ने दी थी कोर्ट में चुनौती – देश में जब प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपात‌काल लगाया तो उस समय शासन-प्रशासन के अधिकारियों ने अनता पर खूब कहर दाया। उनके अत्याचारों से तंग आकर जनता में कांग्रेस पार्टी के प्रति आक्रोश भड़कने लगा। लोगों को ये समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाये है इस काले कानून से कैसे निपटा जाये। जनता की इसी भावना को भाँव कर शहर के एक अधिवक्ता शिवा कांत शुक्ला ने इस काले कानून को उच्च न्यायालय में चुनौती थी। आपातकाल के समर्थन में जहाँ एक जोर’ बड़े-बड़े अधिवक्ताओं ने दलीलें दर्दी वहीं इसकी खामियां, गिनाते हुये, श्री शुक्ला ने जोरदार इसके विरोध में श्री’ शुक्ला ने जोरदार तरीके से अपना पक्ष रखा। न्यायालय भी उनके उनकी तर्कों से संतुष्ट हुआ और अन्ततः केन्द्र द्वारा लगाये गये आपातकाल को गलत ठहराया। इस तरह शहर के इस वकील की पहल, मेहनत, प्रस्तुति, तर्कों का आधार और साहस ने इस काले कानून को अवैध बताने में सफलता प्राप्त की।

 

 

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