समाज कार्य की अवधारणाएं क्या है

 

समाज कार्य की परिभाषाएं क्या है

Samaj Karya Ki Avdharnaye Paribhashaye Kya Hai

 

समाज कार्य की अवधारणा –

समाज में समानता लाने के लिए चलाए जा रहे कल्याणकारी कार्यक्रम “समाज कार्य “कहलाते हैं विशाल जनसंख्या होने के कारण भारत जैसे विकासशील देश में समाज कार्य का महत्व और भी बढ़ जाता है समाज कार्य एक मौलिक अवधारणा है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिसका प्रयोग व्यवस्थित विधियों द्वारा समाज की पीड़ा पर अंकुश लगाने और पीड़ितों को राहत दिलाने के लिए किया जाता है समाज सामाजिक संबंधों का एक जाल है समाज कार्य में समाज के प्रत्येक वर्ग की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं पर ध्यान दिया जाता है उन्हें हल करने की कोशिश की जाती है समाज के गरीब, बीमार और वंचित लोगों के कल्याण पर विशेष ध्यान दिया जाता है एक व्यक्ति मानव समाज की सबसे छोटी इकाई होता है जिनसे मिलकर मानव समाज बनता है और यही व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज में संबंध स्थापित करता है। मनुष्य का सामाजिक संबंध तीन सामाजिक स्तरों पर देखा जाता है -व्यक्ति का व्यक्ति के साथ संबंध ,व्यक्ति का समूह के साथ संबंध ,समूह का समूह के साथ संबंध।

 

समाज कार्य का अर्थ – व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है उसका सदैव प्रयास रहता है कि वह व्यक्तिगत दृष्टि से संतोषप्रद एवं सामाजिक दृष्टि से उपयोगी जीवन यापन कर सके सामान्यतः इन उद्देश्यों की पूर्ति वह अपने प्रयासों को करना चाहता है किंतु कभी-कभी उसकी व्यक्तिगत क्षमताओं में या तो विकार उत्पन्न हो जाता है या सामाजिक क्रम में परिवर्तन के कारण ऐसी स्थिति आ जाती है जिसमें वह समायोजित नहीं हो पाता है ऐसी स्थिति में उसे दूसरे की सहायता की आवश्यकता प्रतीत होती है सामान्यतः यह कार्य समाज कार्य द्वारा किया जाता है आधुनिक युग में वहीं सामाजिक कार्यकर्ता इस कार्य को सक्षम ढंग से कर पता है जैसे समाज कार्य का समुचित ज्ञान हो और उक्त ज्ञान के क्रियान्वयन हेतु उसमें समुचित कौशल हो ।

 

आज समाज कार्य एक प्रोफेशनल कार्य में परिवर्तित हो गया है प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता को एक अच्छे वेतन पैकेज पर नियुक्त किया जाता है अतः वर्तमान युग में समझ में असीमित करियर की संभावना भी हैं इसलिए इस विषय में छात्र-छात्राएं विशेष रुचि ले रहे हैं एक व्यवसाय के रूप में समाज कार्य की अवधारणा का श्री गणेश 19वीं शताब्दी से माना जाता है औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरुप समाज में उभरी अनेक समाजगत समस्याओं को सुलझाने और उनका कारगर निदान ढूंढने के लिए अनेक नए-नए शैक्षिक संस्थान खोले गए हैं जिनमें समाज कार्य एक विषय के रूप में प्रारंभ किया गया है।

 

समाज कार्य की परिभाषाप्रोफेसर क्लार्क का कहना है कि बहुत कम लेखकों ने समाज कार्य की परिभाषा दी है अधिकांश लेखक इसके इतिहास कार्यों प्रक्रियाओं लक्ष्यों तथा प्रकृति की विवेचना ही करते हैं । समाज कार्य के विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएं सरल भाषा में निम्नलिखित है।

 

ऐलिस चेनी (1926) के अनुसार – वे सभी एक ऐच्छिक प्रयास समाहित हैं जो मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किए जाते हैं जिनका संबंध मानवीय संबंधों से है जो वैज्ञानिक ज्ञान और वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करते हैं।

 

हेलेन विटमर (1942)के अनुसार – समाज कार्य का मुख्य उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को उन समस्याओं का निराकरण में सहायता देना है जो संगठित समूह की सेवाओं का उपयोग करने में अथवा एक संगठित समूह के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका संपादित करने में कठिनाई महसूस करते हैं।

 

फिन्क के अनुसार – समाज कार्य व्यक्तियों की एकाकी अथवा समूह में दी जाने वाली सेवाओं की एक ऐसी व्यवस्था है जो वर्तमान या भविष्य में आने वाली उन सामाजिक व मनोवैज्ञानिक बधाओ से निपटने में सहायता करती है।

 

फ्रिडलैंडर (1955) के अनुसार – समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है जो मानव संबंधों के वैज्ञानिक ज्ञान और निपुणता पर आधारित है वह व्यक्तियों को अकेले या समूह में सहायता करती है ताकि वे सामाजिक और व्यक्तिगत संतुष्टि और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें।

 

स्ट्रूप ( 1960)के अनुसार – समाज कार्य एक कला है जिसमें व्यक्ति एवं समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग करते हैं।

 

इंडियन कॉन्फ्रेंस का सोशल वर्क (1957) के अनुसार – समाज कार्य एक कल्याणकारी क्रियाकलाप है जो मानवीय दर्शन वैज्ञानिक ज्ञान और प्राविधिक निपुणताओं पर आधारित है जिसका लक्ष्य एक संपूर्ण सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए व्यक्तियों, समूह और समुदाय की सहायता करना है।

 

बोयम के अनुसार – समाज कार्य व्यक्ति की सामाजिक प्रकार्यात्मकता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है यह प्रयास व अकेले एक व्यक्ति के लिए अथवा समूहों के लिए ऐसे क्रियाकलापों के द्वारा करता है जो व्यक्ति स्वयं पर्यावरण की अंर्तक्रियाओ पर आधारित है।

खिण्डुका (1962)के अनुसार -समाज कार्य किसी व्यक्ति को उसके सामाजिक प्रकार्यों में सहायता देता है यह कुछ वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित है इस हेतु कार्यकर्ता में मानवीय संबंधों से जुड़ी हुई कुछ कुशलताएं भी होनी चाहिए।

ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ सोशल वर्कर्स (2002) के अनुसार समाज कार्य मानवीय संबंधों के बीच सामाजिक एवं समस्या सुलझाओ और सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है और व्यक्तियों को ऐसी स्वतंत्रता प्रदान करता है उनके कल्याण में वृद्धि हो सके।

कोनोपका (1958) के अनुसार समाज कार्य का स्वत्त्व तीन स्पष्ट रूप से भिन्न किंतु परस्पर संबंध कारकों पर आश्रित है सामाजिक सेवाओं का एक जाल , सतर्कता पूर्वक, विकसित विधियां और प्रक्रियाएं तथा सामाजिक नीति जो सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा व्यक्त होती हैं यह सभी तीनों कारक मानवीय दृष्टिकोण उनके अंत संबंधों और उनकी नैतिक मांगों पर आधारित है।

नोट – समाज कार्य की अवधारणा और परिभाषा सरल शब्दों में आपको उपलब्ध कराने का प्रयास किया है उम्मीद है आपको अध्ययन करने में आसानी होगी हम प्रभात की कलम के माध्यम से समाज कार्य का संपूर्ण ज्ञान सरल शब्दों में देने का प्रयास कर रहे हैं।

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