अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जबलपुर ने आपातकाल की विभीषिका के 50 वर्ष पर किया संगोष्ठी और मशाल जुलूस का आयोजन

“India’s Darkest Hour” विषयक संगोष्ठी में आपातकाल की विभीषिका पर चिंतन – लोकतंत्र की पुनर्स्थापना का संकल्प
26 जून 2025 को आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) जबलपुर महानगर के पूर्व भाग द्वारा “India’s Darkest Hour” विषय पर कृषि विश्वविद्यालय में एक प्रभावशाली संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्देश्य लोकतंत्र के सबसे अंधकारमय कालखंड – आपातकाल – की स्मृति को वर्तमान युवा पीढ़ी के सामने रखकर उन्हें उसके इतिहास, संघर्ष और सीख से परिचित कराना था।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचार-प्रसार प्रमुख श्री विनोद दिनेश्वर ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा,
“आज से ठीक पचास वर्ष पूर्व, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का गला घोंटने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान की मर्यादाओं को रौंदते हुए आपातकाल थोप दिया था। यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला अध्याय था।”
उन्होंने बताया कि संघ के सरसंघचालक समेत हजारों कार्यकर्ताओं और प्रचारकों की गिरफ्तारी 25 जून की रात से ही शुरू हो गई थी।
“यह स्वतंत्र भारत में एक नया स्वतंत्रता संग्राम था, जिसमें सत्य, साहस और लोकतंत्र की रक्षा हेतु संघ ने भूमिगत रहते हुए संगठित संघर्ष किया,” – उन्होंने कहा।
आपातकाल की पृष्ठभूमि समझाते हुए उन्होंने कहा कि – 25 जून 1975 को ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को चुनाव में भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया था। उसके ठीक बाद, सत्ता के संरक्षण के लिए लोकतंत्र को कुचल दिया गया।
संगोष्ठी में बताया गया कि कैसे गुजरात में छात्रों द्वारा शुरू हुआ “नवनिर्माण आंदोलन” तानाशाही के विरुद्ध जनचेतना का आधार बना। चिमनभाई पटेल सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ उठा यह आंदोलन एक बड़े जनआंदोलन में तब्दील हो गया और अंततः मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा।
वक्तव्य में 20 जून 1975 की उस विशाल रैली का उल्लेख किया गया, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने इंदिरा गांधी की प्रशंसा में कहा था –“इंदिरा तेरे सुबह की जय, तेरे शाम की जय, तेरे काम की जय, तेरे नाम की जय!”

आपातकाल का सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य : 1975 के भारत की दयनीय स्थिति को रेखांकित करते हुए वक्ता ने बताया कि –
• उस समय देश की विकास दर मात्र 1.2% थी
• विदेशी मुद्रा भंडार 1.3 बिलियन डॉलर पर सिमटा हुआ था
• मुद्रास्फीति दर 20% से अधिक थी
• 50% से अधिक जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रही थी
• बेरोजगारी और भ्रष्टाचार चरम पर थे
वक्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि इंदिरा गांधी ने “गरीबी हटाओ” के नारे पर सत्ता पाई, लेकिन देश को भय, भ्रांति और भ्रष्टाचार की ओर धकेल दिया।
संघ का संघर्ष और युवाओं की भूमिका : श्री दिनेश्वर ने कहा कि आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अदृश्य रूप से सत्याग्रह और भूमिगत गतिविधियों द्वारा लोकतंत्र की लौ जलाए रखी। हजारों स्वयंसेवकों ने जेलें भरीं। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि –
“आज जब भारत विकास के नए पथ पर अग्रसर है, तब यह जरूरी है कि हम उस संघर्ष को याद रखें, जिसने लोकतंत्र को बचाया। शिक्षा, सुरक्षा और समाज सेवा के क्षेत्रों में हम युवाओं को आगे आकर भारत को विश्वगुरु बनाने में भूमिका निभानी है।”
आगे उन्होंने कहा कि आपातकाल में संघ स्वयंसेवक परशुराम रजक और सोमनाथ हेडा की मौतें शासन की संवेदनहीनता का प्रतीक थीं। बीमारी में भी इलाज न मिलना, अमानवीय व्यवहार और लापरवाही ने दोनों की जान ले ली। ये घटनाएं उस दौर की तानाशाही और लोकतंत्र की क्रूर हत्या का ज्वलंत प्रमाण हैं।
साथ ही अभाविप जबलपुर महानगर के अक्षत ताम्रकार ने भूमिका रखते हुए बताया कि आपातकाल किस प्रकार से उस काल खंड के काला धब्बा की तरह है,जो कि कभी मिटाई नहीं जा सकती। आज भी कितनी पीढ़ियां उस आपातकाल के शोषण का दंश झेल रही है । वहीं उस समय नो अपील, नो वकील, नो दलील के क्रम को बढ़ाकर न्यूज पेपरों पर रोक लगा दी गई मीडिया वाले बंद कर दिया गया, आकाशवाणी केंद्रों में आग लगा दी गई।
कार्यक्रम में अभाविप जबलपुर महानगर मंत्री श्री ऐश्वर सोनकर, कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण, छात्र-छात्राएं एवं विभिन्न महाविद्यालयों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। संगोष्ठी के दौरान विचार-विमर्श, प्रश्नोत्तर एवं स्मृति शेष चित्र प्रदर्शनी द्वारा उपस्थितजनों को 1975 की विभीषिका का जीवंत अनुभव कराया गया।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जबलपुर द्वारा मशाल यात्रा निकाली गई – आपातकाल की विभीषिका के 50 वर्ष
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जबलपुर महानगर द्वारा मशाल यात्रा का आयोजन किया गया। यह यात्रा 1975 में लोकतंत्र पर हुए सबसे बड़े हमले के विरोध में, उस संघर्ष और प्रतिरोध को स्मरण करने हेतु निकाली गई। मशाल यात्रा में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मशाल लिए ‘लोकतंत्र अमर रहे’ के नारों के साथ शामिल हुए।
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